( तर्ज - कायाका पिंजरा डोले ० )
यह माया दुर्धर भारी ,
इने कई बाँधकर मारी॥टेक ॥
जो जगमें पैदा होवे ,
यह उसपर हक्क चलावे ।
अपनीही कफनी डारी ,
इनके कई ० ।। १ ।।
बडे साधू जगमें आये ,
जो बनमें धूनि जमाये ।
यह जाय उन्हें बहलारी ,
इने कई ० ॥२ ॥
मुनि नारदको नहिं छोड़ा ,
ऋषि विश्वामित्रभि छेडा ।
शंकरपर युँहि सवारी ,
इने कई ० ॥३ ॥
जो गुरु - ग्यान - रंग लावे ,
अरु रँगमें वृत्ति जमावे ।
कहे तुकड्या उससे हारी ,
इने कई ० ॥४ ॥
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